मुझमें इतनी भी अब हिम्मत नहीं है
बयां कर सकूँ ये वो मुहब्बत नहीं है।
ये चिराग़ रोशन नहीं होंगे रोशनी में
ख़्वाब है सबकुछ, हक़ीकत नहीं है।
अब ये उम्मीद ही टूट जाये तो क्या
नाउम्मीदी से मुझे अज़ीयत नहीं है।
दायरे किस कदर दरम्यान लाती है
फ़ासले में कुछ भी किस्मत नहीं है।
एक इबादत ही थी जो याद है वर्मा
ये ज़िन्दगानी कोई कहावत नहीं है।
नितेश वर्मा
बयां कर सकूँ ये वो मुहब्बत नहीं है।
ये चिराग़ रोशन नहीं होंगे रोशनी में
ख़्वाब है सबकुछ, हक़ीकत नहीं है।
अब ये उम्मीद ही टूट जाये तो क्या
नाउम्मीदी से मुझे अज़ीयत नहीं है।
दायरे किस कदर दरम्यान लाती है
फ़ासले में कुछ भी किस्मत नहीं है।
एक इबादत ही थी जो याद है वर्मा
ये ज़िन्दगानी कोई कहावत नहीं है।
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment