हुस्ने-उमर भी चढ़ती फ़िरे मुझपर
बदन-ए-लिबासे-ख़ूँ-तरसे मुझपर।
तन्हा हूँ मैं मुसाफ़िर इस सफ़र में
कोई बज़्म देखके ना थूके मुझपर।
मैं.. निबाहने शायद नहीं आया था
बे-बुनियाद ना बोझ रक्खे मुझपर।
बेहाल क्या होगा मेरे दिले आख़िर
जो, वो जुल्म ना कोई करे मुझपर।
अब लिपट जायेगा फिर से ख़ुदमें
ख़ुदके बाद जो नज़्रें ठहरे मुझपर।
मुश्ताक थे सब, बस तेरे नाम को
ये बेज़ारी-ए-आलम बरसे मुझपर।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
बदन-ए-लिबासे-ख़ूँ-तरसे मुझपर।
तन्हा हूँ मैं मुसाफ़िर इस सफ़र में
कोई बज़्म देखके ना थूके मुझपर।
मैं.. निबाहने शायद नहीं आया था
बे-बुनियाद ना बोझ रक्खे मुझपर।
बेहाल क्या होगा मेरे दिले आख़िर
जो, वो जुल्म ना कोई करे मुझपर।
अब लिपट जायेगा फिर से ख़ुदमें
ख़ुदके बाद जो नज़्रें ठहरे मुझपर।
मुश्ताक थे सब, बस तेरे नाम को
ये बेज़ारी-ए-आलम बरसे मुझपर।
नितेश वर्मा
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