कल ही देखा था तुम्हें.. शायद तुम भूल गयी हो मुझे, अगर मैं तुम्हें याद नहीं तो बहोत अच्छा बहाना बनाने लगी हो तुम। मुझे पता है जैसे मैं तुम्हें नहीं भूल सकता ठीक उसी तरह तुम भी मुझे कभी नहीं भूला सकती। वो बात अलग है तुम्हारी दिखावे करने की आदत और भी कहीं बेहतर हो गयीं होगी। किसी को जानते हुए, किसी को देखते हुए, सब समझते हुए, तुम्हारा नज़रअंदाज हो जाना.. किस कदर मुझे बेचैन कर दिया करता था, इसे तुम शायद कभी ना समझ पाओ।
हर वक़्त जिस तरह तुम्हें बेहतर बनने की आदत होती ठीक उसी तरह मुझे भी तुम्हें चाहने, तुम्हें पा लेने की, एक कशिश खिंचती रहती। मैं तुम्हें अपना बना कर रखने की हर नाकाम कोशिश करता और तुम्हें इसकी कभी कोई परवाह ही नहीं होती, क्योंकि तुम तो अजीबोग़रीबों चेहरे से हर वक़्त घिरी रहती थीं। मुझे तो कभी-कभी तुमसे चिढ़न होने लगती, मगर हर बार की तरह मेरी मोहब्बत ही मेरे गुस्सों पर भारी पड़ जाती थीं।
जाने क्यूं तुम्हारी नज़रें एक पल को मुझपर ठहरती फिर घंटों मुझे एक मीठी सी एहसास में तड़पाती रहती। मैं तुम्हें बेहिस चाहता था तब भी और आज भी। बस, वहीं प्यार लिये खुद में जिंदा हूँ, इस इंतजार में - के फिर अगली बार जो कभी मिलोगी तो मुझे देखकर किस कदर हैंरान हो जाओगी और फिर मैं भी घंटों तुम्हारे चेहरे को लिये खुद में परेशान रहूँगा तुम्हारी बताईं हुई इस बात में..
मेरी आँखों में - की सबसे सुंदर तुम्हारी आँखें हैं, तुम्हारी आँखें जैसे बातें करती हैं। कोई, कुछ भी कहें, कमसेकम मुझसे तो जरूर किया करतीं हैं, इनमें डूबने का दिल होता हैं और फिर इनमें ठहर जाने का, मगर हिम्मत नहीं होती कभी।
और फिर मैं हमेशा की तरह तुम्हारी तस्वीर को लिये गाने को उतारूँ हो जाऊँगा - आए! हाय! तेरी बिंदया रे।
देखो अब शाम भी ढल गयीं है, तुम्हारी याद में.. तुम्हारी बात में।
नितेश वर्मा
हर वक़्त जिस तरह तुम्हें बेहतर बनने की आदत होती ठीक उसी तरह मुझे भी तुम्हें चाहने, तुम्हें पा लेने की, एक कशिश खिंचती रहती। मैं तुम्हें अपना बना कर रखने की हर नाकाम कोशिश करता और तुम्हें इसकी कभी कोई परवाह ही नहीं होती, क्योंकि तुम तो अजीबोग़रीबों चेहरे से हर वक़्त घिरी रहती थीं। मुझे तो कभी-कभी तुमसे चिढ़न होने लगती, मगर हर बार की तरह मेरी मोहब्बत ही मेरे गुस्सों पर भारी पड़ जाती थीं।
जाने क्यूं तुम्हारी नज़रें एक पल को मुझपर ठहरती फिर घंटों मुझे एक मीठी सी एहसास में तड़पाती रहती। मैं तुम्हें बेहिस चाहता था तब भी और आज भी। बस, वहीं प्यार लिये खुद में जिंदा हूँ, इस इंतजार में - के फिर अगली बार जो कभी मिलोगी तो मुझे देखकर किस कदर हैंरान हो जाओगी और फिर मैं भी घंटों तुम्हारे चेहरे को लिये खुद में परेशान रहूँगा तुम्हारी बताईं हुई इस बात में..
मेरी आँखों में - की सबसे सुंदर तुम्हारी आँखें हैं, तुम्हारी आँखें जैसे बातें करती हैं। कोई, कुछ भी कहें, कमसेकम मुझसे तो जरूर किया करतीं हैं, इनमें डूबने का दिल होता हैं और फिर इनमें ठहर जाने का, मगर हिम्मत नहीं होती कभी।
और फिर मैं हमेशा की तरह तुम्हारी तस्वीर को लिये गाने को उतारूँ हो जाऊँगा - आए! हाय! तेरी बिंदया रे।
देखो अब शाम भी ढल गयीं है, तुम्हारी याद में.. तुम्हारी बात में।
नितेश वर्मा
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