Sunday, 14 August 2016

क़िस्सा मुख़्तसर : साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम

साहिर अकसर अमृता से मिलने उनके घर आ जाया करते थे.. आते और फिर ख़ामोशी से एक सोफ़े पर बैठ जाते। घंटों उन दोनों के बीच कोई बात नहीं होती, साहिर चुपचाप सिग्रेट जलाते और फिर उसे आधा पीकर बुझा देते। अमृता कभी-कभार उनसे कुछ पूछ लिया करती, कुछ चाय-नाश्ते का पूछ लेती, कोई कांफ़्रेंस की बात छेड़ लेती.. मग़र साहिर कुछ नहीं कहते.. बस मुस्कुरा भर देते, वे एक ज़ेहनियतपसंद इंसान थे। यही बाइस रहा था कि अमृता ने कई ज़गह अपने मुहब्बत का इक़रारनामा लिखा था, और साहिर उनके लिए एक नज़्म भी नहीं बुन पाये थे।
साहिर की मुहब्बत.. ख़ामोश मुहब्बत थी.. वो उनके अंदर चीख़ती थी और चीख़कर फिर ख़ामोश हो जाती थी। साहिर, अमृता से ताउम्र जुड़े रहें, उनसे मिलते रहे, मग़र उनके कभी हो ना सके। अमृता, साहिर के लिए ही ज़िंदा थी वर्ना तो वो अपनी ही जिंदगी में कई दफ़ा मरी थी, वो मरती.. साहिर आकर फिर उन्हें ज़िंदा कर जाते। साहिर सच में जादूग़र थे और अमृता सच में कोई जादू की पुड़िया। साहिर और अमृता अब नहीं है, मग़र यक़ीन नहीं होता के ऐसे लोग इतनी तल्ख़ ज़िंदगीयाँ जीकर मरे है।

नितेश वर्मा

‪#‎Niteshvermapoetry‬

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