Sunday, 14 August 2016

मुझे अब ज़रुरत नहीं है तुम्हारे ये हौसले अफ़ज़ाई की

मुझे अब ज़रुरत नहीं है तुम्हारे ये हौसले अफ़ज़ाई की
मुहब्बत के यक़ीन की और ना ही कोई आश्नाई की
ना ही मैं अब तुमसे कोई उम्मीद रखता हूँ इन निगाहों में
ना ही कोई गिरफ़्त है ना ही कोई क़ैद है मेरी बाहों में
मैं ख़ुशग़वार सही तुम मेरे किसी दर्द के चाराग़र नहीं
उलझे थे कहीं दिन-ए-सुखन मेरे, है कही दिले-दरार नहीं
कबतक मैं ख़ुदको एक साये से यूं बेवज़ह बांधे रखता
तुम बदल गए, मैं भूल गया ये कसमें दे दे के दुहाई की
मुझे अब ज़रुरत नहीं है तुम्हारे ये हौसले अफ़ज़ाई की
मुहब्बत के यक़ीन की और ना ही कोई आश्नाई की।

नितेश वर्मा

‪#‎Niteshvermapoetry‬

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