Sunday, 14 August 2016

एक छोटी सी प्रेम-कहानी : युसूफ़-ज़ुलेखा

पहले तो मुझे बेहद शर्मीला लगा था वो।
कौन?
कौन क्या? वही, जो कल दरवाज़े तक आ गया था। शुक्र मनाओ अब्बू नहीं थे, वर्ना जिन पैरों से चलकर आया था ना, उससे वापस नहीं जाता।
हुम्मम।
हुम्मम, क्या? दरवाज़ा खटखटाया - जब मैंने खोला तो पूरी बेशर्मी से उसने पूछ दिया - यहाँ जुलेख़ा रहती है ना।
मैंने थोड़ा सोचते हुए - हाँ कह दिया।
फ़िर?
फ़िर क्या? उसने कहा - उनसे कहियेगा- मैं उनको सिर्फ़ ये बताने आया था कि- मेरा नाम युसूफ़ है।

नितेश वर्मा

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