शिकायत नहीं है ये बस बता रहा हूँ तुम्हें
तुम्हारी हर ग़ल्तियों से बचा रहा हूँ तुम्हें।
मैं सरेआम पत्थर पर उंगली नहीं उठाता
बंद कमरे में फिर क्यूं जला रहा हूँ तुम्हें।
कई अज़ीब वाक़ये हुए ज़िन्दगी में हमारे
यूं कई तरीके से मैं भी भूला रहा हूँ तुम्हें।
अब मानता हूँ मैं भी कि मुहब्बत नहीं है
अंजाम-ए-शिकस्त मैं दुहरा रहा हूँ तुम्हें।
नितेश वर्मा
तुम्हारी हर ग़ल्तियों से बचा रहा हूँ तुम्हें।
मैं सरेआम पत्थर पर उंगली नहीं उठाता
बंद कमरे में फिर क्यूं जला रहा हूँ तुम्हें।
कई अज़ीब वाक़ये हुए ज़िन्दगी में हमारे
यूं कई तरीके से मैं भी भूला रहा हूँ तुम्हें।
अब मानता हूँ मैं भी कि मुहब्बत नहीं है
अंजाम-ए-शिकस्त मैं दुहरा रहा हूँ तुम्हें।
नितेश वर्मा
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