हर बार मौत से वो पीछा छुडा लेता हैं
ज़िन्दगी को वो क्यूं बडा बना लेता हैं
क्या कम तकलीफें दिये हैं ज़िंदगी ने
फिर क्यूं उसे ये मौत गले लगा लेता हैं
यूं सबके अंदर एक तूफां का बसेरा हैं
फिर भी वो इक आग क्यूं जला लेता हैं
कोई प्यासा था तेरे शहर में कभी वर्मा
आजतक वो क्यूं यूं नजर छुपा लेता हैं
नितेश वर्मा
ज़िन्दगी को वो क्यूं बडा बना लेता हैं
क्या कम तकलीफें दिये हैं ज़िंदगी ने
फिर क्यूं उसे ये मौत गले लगा लेता हैं
यूं सबके अंदर एक तूफां का बसेरा हैं
फिर भी वो इक आग क्यूं जला लेता हैं
कोई प्यासा था तेरे शहर में कभी वर्मा
आजतक वो क्यूं यूं नजर छुपा लेता हैं
नितेश वर्मा
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