Wednesday, 22 July 2015

रहे बेरूख हरपल किसी से तो नफरत हैं जिन्दगी।

किसी के ख्यालों में यूं गुजरें तो मुहब्बत हैं जिन्दगी
रहे बेरूख हरपल किसी से तो नफरत हैं जिन्दगी।

किसको मिटाएँ, किसको याद रखें सवाली जिन्दगी
हर विरह से तुझे सोच गुजरें तो सोहबत हैं जिन्दगी।

सब लिखा, सब मेरे हिस्सों से टूटकर गिरने लगा था
जब एहसास हुआ तो लगा जैसे तोहमत हैं जिन्दगी।

उसने ख्वाबों की कई चादर बिछाके रक्खी थी वर्मा
हल्की सी आहट पाकर बिखरी हतोहद हैं जिन्दगी।

नितेश वर्मा और जिन्दगी

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