Sunday, 26 July 2015

रोटियां

कोई बेच रहा है बेहिसाब रोटियां
कोई देख रहा है ख्वाब की रोटियां
कोई किस्मत से हैं तोड़ता कभी
तो किसी की है ये जागीर रोटियां

भूखा हैं, कुछ थोड़ा प्यासा भी
मजदूर चाहता है सब दूर करें
खाकर कमाई की दो रोटियां
कुछ और खरीद ले, लेकिन क्यूं
कल तो फिर सताऐंगी
आग पेट की लपटें-दर-लपटें
कब तक तडपाऐंगी ये रोटियां
जब तलक जां हैं लड़ रही है
मरने के बाद मेरे
मुँह मे सबके ठूँसी जाऐंगी रोटियां
कोई बेच रहा है बेहिसाब रोटियां
कोई देख रहा है ख्वाब की रोटियां

नितेश वर्मा और रोटियां।

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