कोई किसी को यूं कहाँ तक याद रखता है
अब नहीं दिल मेरा कोई जज्बात रखता है।
वो जो यूं टूटता हैं तो दिल से भी टूट जाये
आईना भी टूट के कहाँ कुछ साथ रखता है।
उसको भी बिछड़ के कहाँ एक पल सुकूं है
फिर क्यूं वो साथ अपने आफताब रखता है।
अब तो वो अपनी जां तक कुर्बां करने को है
फिर जुबां क्यूं उसे यूं ही गिरफ्तार रखता है।
बदनाम शहर का बदनाम शख्स हूँ मैं वर्मा
मगर फिर भी होना मेरा कुछ बात रखता है।
नितेश वर्मा
अब नहीं दिल मेरा कोई जज्बात रखता है।
वो जो यूं टूटता हैं तो दिल से भी टूट जाये
आईना भी टूट के कहाँ कुछ साथ रखता है।
उसको भी बिछड़ के कहाँ एक पल सुकूं है
फिर क्यूं वो साथ अपने आफताब रखता है।
अब तो वो अपनी जां तक कुर्बां करने को है
फिर जुबां क्यूं उसे यूं ही गिरफ्तार रखता है।
बदनाम शहर का बदनाम शख्स हूँ मैं वर्मा
मगर फिर भी होना मेरा कुछ बात रखता है।
नितेश वर्मा
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