दिल बेघर एक जबाँ चाहिए
हमको हमारा मकाँ चाहिए।
वो बुझ-बुझ के कहते रहे है
जलता हुआ ये शमाँ चाहिए।
हदें जिस को रोकें हैं मुझसे
उस आँखों को ख्वाँ चाहिए।
क्यूं सिमटे खुद में दरिया तू
वर्मा को इसकी वजाँ चाहिए।
नितेश वर्मा और चाहिए।
हमको हमारा मकाँ चाहिए।
वो बुझ-बुझ के कहते रहे है
जलता हुआ ये शमाँ चाहिए।
हदें जिस को रोकें हैं मुझसे
उस आँखों को ख्वाँ चाहिए।
क्यूं सिमटे खुद में दरिया तू
वर्मा को इसकी वजाँ चाहिए।
नितेश वर्मा और चाहिए।
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