Wednesday, 1 July 2015

ठहर गयी तुझे देखकर मेरी आवाज़ क्यूं

ठहर गयी तुझे देखकर मेरी आवाज़ क्यूं
कोई बेहिसाब छेड़ गयी बात
मुझे देखकर तेरी आवाज़ क्यूं

कबसे ख्वाबों में ड़ूबी थीं निगाहें उसकी
मुझपे आकर रुक गयी
उसकी हर तालाश क्यूं

यही ख्याल कबसे परेशां कर रहा मुझे
किस्मत-ए-शर्तों पे गुजारी
भरी जिंदगी-ए-शराब क्यूं

मुहब्बत की यूं आजमाइश करने को है
कब तलक गुनाहों में रहे
नाम तेरा वर्मा बर्बाद क्यूं

ठहर गयी तुझे देखकर मेरी आवाज़ क्यूं
कोई बेहिसाब छेड़ गयी बात
मुझे देखकर तेरी आवाज़ क्यूं

नितेश वर्मा

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