अगर उस इंसान को यूं मौत ना आये
उसे फिर कभी कोई खौफ ना आये।
वो यूंही सबके दीयेंलौ बुझाता रहेगा
ग़र खुद उसे आँधी-ए-रौंस ना आये।
बादस्तूर चलने की आदत हो गयी हैं
अब ना चले तो कोई धौंस ना आये।
के कई मरहम ठुकरा दिये मैंने वर्मा
भूल जायें सब तो कोई जौक ना आये।
नितेश वर्मा
उसे फिर कभी कोई खौफ ना आये।
वो यूंही सबके दीयेंलौ बुझाता रहेगा
ग़र खुद उसे आँधी-ए-रौंस ना आये।
बादस्तूर चलने की आदत हो गयी हैं
अब ना चले तो कोई धौंस ना आये।
के कई मरहम ठुकरा दिये मैंने वर्मा
भूल जायें सब तो कोई जौक ना आये।
नितेश वर्मा
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