नजानें कौन किस हक से कब बुला ले मुझे
मैं इक सवाल हूँ जानें कौन सुलझा ले मुझे।
बदनसीब हूँ इतना के अब रातों में नींद नहीं
कोइ हो ग़र तो आके बाहों में सुला ले मुझे।
दिन भर दिन वो बेफिक्र रही हैं घूमती यूंही
रात सिराहनें आ कहीं माँ अब छुपा ले मुझे।
वो परिन्दा भी कितना अज़ीब निकला यारों
प्यासा हारा तो कहा गर्मी अब जला ले मुझे।
बिखरा जब वो इक तस्वीर आइना कमरें का
वर्मा को हैं समझायें के अब अपना ले मुझे।
नितेश वर्मा
मैं इक सवाल हूँ जानें कौन सुलझा ले मुझे।
बदनसीब हूँ इतना के अब रातों में नींद नहीं
कोइ हो ग़र तो आके बाहों में सुला ले मुझे।
दिन भर दिन वो बेफिक्र रही हैं घूमती यूंही
रात सिराहनें आ कहीं माँ अब छुपा ले मुझे।
वो परिन्दा भी कितना अज़ीब निकला यारों
प्यासा हारा तो कहा गर्मी अब जला ले मुझे।
बिखरा जब वो इक तस्वीर आइना कमरें का
वर्मा को हैं समझायें के अब अपना ले मुझे।
नितेश वर्मा
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