मुझमें कुछ जल रहा और कुछ खाक हैं
इक ख्वाबों का ढेर और खंडहर पास हैं।
कुछ हिस्सा किताबों में यूं कालिख सा हैं
और कुछ ये जबां बेरंग बेहिसाब राख हैं।
नितेश वर्मा
इक ख्वाबों का ढेर और खंडहर पास हैं।
कुछ हिस्सा किताबों में यूं कालिख सा हैं
और कुछ ये जबां बेरंग बेहिसाब राख हैं।
नितेश वर्मा
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