मैं शहर की आवाज़ लिखनें आया हूँ
मैं भी हूँ उतना ही गुनेहगार
जितना के मैं गुनाह लिखनें आया हूँ
किसी मासूम को रस्तें के किनारें देखा
किसी बच्चें को जीनें के लिये कमाते देखा
कोई बेबस बाप को हारतें देखा
किसी माँ की बेटी को भटकतें देखा
हर ओर एक शोर सा हैं, ये लहर कैसा हैं
ज़िंदा तो हैं सब
मग़र सबको साँसों से बिछडते देखा
लडते हैं देखा, मौत में खुद को करते हैं देखा
सब दिवा-स्वप्न सा हैं लगता
सबका वादा उतना ही झूठा लगता
काली रात वो तूफा-ओ-बारिश वाली
छ्ट तो गयी हैं,
मग़र सूरज को खुद से ही छुपते देखा
सब बदलते, बिछडते, बिगडतें, बिखरते देखा
मग़र अब जब जागा तो कहनें आया हूँ
मैं शहर की आवाज़ लिखनें आया हूँ
मैं भी हूँ उतना ही गुनेहगार
जितना के मैं गुनाह लिखनें आया हूँ
नितेश वर्मा और गुनाह लिखनें आया हूँ
मैं भी हूँ उतना ही गुनेहगार
जितना के मैं गुनाह लिखनें आया हूँ
किसी मासूम को रस्तें के किनारें देखा
किसी बच्चें को जीनें के लिये कमाते देखा
कोई बेबस बाप को हारतें देखा
किसी माँ की बेटी को भटकतें देखा
हर ओर एक शोर सा हैं, ये लहर कैसा हैं
ज़िंदा तो हैं सब
मग़र सबको साँसों से बिछडते देखा
लडते हैं देखा, मौत में खुद को करते हैं देखा
सब दिवा-स्वप्न सा हैं लगता
सबका वादा उतना ही झूठा लगता
काली रात वो तूफा-ओ-बारिश वाली
छ्ट तो गयी हैं,
मग़र सूरज को खुद से ही छुपते देखा
सब बदलते, बिछडते, बिगडतें, बिखरते देखा
मग़र अब जब जागा तो कहनें आया हूँ
मैं शहर की आवाज़ लिखनें आया हूँ
मैं भी हूँ उतना ही गुनेहगार
जितना के मैं गुनाह लिखनें आया हूँ
नितेश वर्मा और गुनाह लिखनें आया हूँ
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