क्यूं कुछ कहानियाँ अधूरी रहती हैं
या खुदा तेरी क्या मजबूरी रहती हैं
सवालें उसकी भी जुबाँ पे रहती हैं
फिर क्यूं निगाहों की दूरी रहती हैं
हर मर्तबा धड़क जाता हैं देखकर
साँसें ये मेरी उसी से जुड़ी रहती हैं
उसकी जुल्फों का बिगड़ना यूंही हैं
दिल क्यूं फिर उसपे ठहरी रहती हैं
नितेश वर्मा
या खुदा तेरी क्या मजबूरी रहती हैं
सवालें उसकी भी जुबाँ पे रहती हैं
फिर क्यूं निगाहों की दूरी रहती हैं
हर मर्तबा धड़क जाता हैं देखकर
साँसें ये मेरी उसी से जुड़ी रहती हैं
उसकी जुल्फों का बिगड़ना यूंही हैं
दिल क्यूं फिर उसपे ठहरी रहती हैं
नितेश वर्मा
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