सब कुछ जलाकर भी जिंदा हैं
घर का चूल्हा फिर भी ठंडा हैं।
उसे क्या लगी है, मिलने की यूं
वो तो आसमाओं का परिंदा हैं।
कुछ परहेज कर हम चलते रहे
लगा जबके ये जां भी बसींदा हैं।
सबको हारा देखकर, जीत गया
शख्स आज वहीं इक शर्मिंदा हैं।
नितेश वर्मा और शर्मिंदा शख्स
घर का चूल्हा फिर भी ठंडा हैं।
उसे क्या लगी है, मिलने की यूं
वो तो आसमाओं का परिंदा हैं।
कुछ परहेज कर हम चलते रहे
लगा जबके ये जां भी बसींदा हैं।
सबको हारा देखकर, जीत गया
शख्स आज वहीं इक शर्मिंदा हैं।
नितेश वर्मा और शर्मिंदा शख्स
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