Wednesday, 22 July 2015

नितेश वर्मा और इंसान

उसकी कदमें उसका साथ नहीं दे रही थीं फिर भी वो लगातार भागें जा रही थी, वो खुद को शायद बचा लेना चाहती थीं मग़र अंधेरी काली रातों में ना तो वो कुछ देख पा रही थी और ना ही कहीं रूक के दो पल सँभलना चाहती थी। बारिश ऐसी हो रही थी मानों किसी बेसब्र नदी का बाँध टूट पड़ा हो, आँधी उसके कदमों को जैसे आगे बढ़ने से इस तरह रोक रही थी के वो चाहती थी की वो आज इस नाज़ुक पल को समझे और अपने हठ को छोड़ दे।
मगर शैला ने विभय को जो आज तक माना था, उसे भगवान बना के पूजा था, वो सब बेवजह था। कोई प्यार नहीं था सब एक झूठ सा लग रहा था। वो बस भाग के खुद को खुद से रिहा कर लेना चाहती थीं, वो थक गयी थी लेकिन वो रूकना नहीं चाहती थी, वो दौड़ें जा रही थी लगातार, बेमंजिल। उसको आज अपनी माँ की फिर वही बात याद आ गयी थी कि बेटा एक अच्छा इंसान भी इंसान ही होता हैं, भगवान नहीं।

नितेश वर्मा और इंसान

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