माँगा जो आज हक घर से सबने
किसी का दिल दुखा
तो कोई दिल गया टूट खुदमें
पहचानता कहा हैं कोई दीवारों-दर को
कोई टुकडा हो गया तो कोई बे-औकात
नज़रों का क्या दोष हैं
आँखों से कभी गिरे तो थें
बारिश नें खुद में समेट लिया
तो क्या करें
बरसात में बरसात
आँखें, दिल , जिस्म सब रोंये
जुबां से कोई बात क्या करें
कहीं से टूटकर हैं गिरा
किसी के खुशियों को
कोई बात हैं इसे बुनना
ज़मीं पे बिखरकर
मिटा लो हर ग़म को
कर लो खुद को साफ
भींगा हैं ज़िस्म तो
कर लो खुद में थोडी बरसात.. थोडीं बरसात
नितेश वर्मा और थोडी बरसात।
किसी का दिल दुखा
तो कोई दिल गया टूट खुदमें
पहचानता कहा हैं कोई दीवारों-दर को
कोई टुकडा हो गया तो कोई बे-औकात
नज़रों का क्या दोष हैं
आँखों से कभी गिरे तो थें
बारिश नें खुद में समेट लिया
तो क्या करें
बरसात में बरसात
आँखें, दिल , जिस्म सब रोंये
जुबां से कोई बात क्या करें
कहीं से टूटकर हैं गिरा
किसी के खुशियों को
कोई बात हैं इसे बुनना
ज़मीं पे बिखरकर
मिटा लो हर ग़म को
कर लो खुद को साफ
भींगा हैं ज़िस्म तो
कर लो खुद में थोडी बरसात.. थोडीं बरसात
नितेश वर्मा और थोडी बरसात।
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