Sunday, 16 August 2015

फलसफा ये है

फलसफा ये है
की जूझ रहा हूँ
जिन्दगी को हरा दूँ
कोशिशें कर रहा हूँ
खुद में टूट रहा हूँ
खुदा से भी रूठ रहा हूँ
जाने कौन सी किस्मत है
माथे दर्द ही रख रहा हूँ
क्या करू किससे कहूँ
आवाज़ लिये गले में ही
बरसों से सूख रहा हूँ
फलसफा ये है
की जूझ रहा हूँ

मिली थीं छोटी जिन्दगी
पहले तन्हा गुजारी
अब कोई साथ है
या कहो वो मेरी जां हैं
मेरे तीन बच्चे हैं
सब कितने अच्छे हैं
मुझे समझते है
मगर क्या हुआ है अब
समझ कुछ आता नहीं
कर्ज़ में हूँ सर से पैर तक
मगर किसी को भी
खुश ना कर सका
ये मैं देखता हूँ
जैसा मैंने कहा
वो अच्छे हैं
कुछ बोलते नहीं
मगर देख के ये
मैं टूट जाता हूँ
क्या कहूँ
के कितना रूठ जाता हूँ
अब हल्का कर रहा हूँ
उनको कुछ बड़ा कर रहा हूँ
कामयाब हो
वो और नायाब हो
इबादत कर रहा हूँ
सबकी सुन रहा हूँ
परवाह नहीं
कुछ तो अच्छा कर रहा हूँ
फलसफा ये है
की जूझ रहा हूँ।


नितेश वर्मा

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