Tuesday, 25 August 2015

ये सूरज तो अब भी पश्चिम में ढलता हैं

चिडियों की आवाज़ के साथ निकलता हैं
ये सूरज तो अब भी पश्चिम में ढलता हैं

कौन कहता हैं के जहां में खुदा हैं ही नहीं
फिर रात भर चाँद में और कौन जलता हैं

इबादत कभी सच्चें दिलों से की ही नहीं
वो जो हरपल लेके हाथ में राख मलता हैं

मुझसे शिकायत बस इस लहज़े में की हैं
के कैसे मौसम से पहलें इंसान बदलता हैं

भर के आँखों में एक चमक चल दिये वर्मा
जानें ये नाम सबके आँखों में क्यूं खलता हैं।

नितेश वर्मा

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