चिडियों की आवाज़ के साथ निकलता हैं
ये सूरज तो अब भी पश्चिम में ढलता हैं
कौन कहता हैं के जहां में खुदा हैं ही नहीं
फिर रात भर चाँद में और कौन जलता हैं
इबादत कभी सच्चें दिलों से की ही नहीं
वो जो हरपल लेके हाथ में राख मलता हैं
मुझसे शिकायत बस इस लहज़े में की हैं
के कैसे मौसम से पहलें इंसान बदलता हैं
भर के आँखों में एक चमक चल दिये वर्मा
जानें ये नाम सबके आँखों में क्यूं खलता हैं।
नितेश वर्मा
ये सूरज तो अब भी पश्चिम में ढलता हैं
कौन कहता हैं के जहां में खुदा हैं ही नहीं
फिर रात भर चाँद में और कौन जलता हैं
इबादत कभी सच्चें दिलों से की ही नहीं
वो जो हरपल लेके हाथ में राख मलता हैं
मुझसे शिकायत बस इस लहज़े में की हैं
के कैसे मौसम से पहलें इंसान बदलता हैं
भर के आँखों में एक चमक चल दिये वर्मा
जानें ये नाम सबके आँखों में क्यूं खलता हैं।
नितेश वर्मा
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