वो याद है पहली सुबह
कैसे आँखें मींचे उठते थे
घर से बाहर एक शोर होती थी
झंडा सबके हाथ होता था
सर पर किसी किसी के
तिरंगा टोपी होता था
वो ही भरे थैले चाकलेटों का
इकलौता मालिक होता था
खूब उडाये, खूब लूटे थे
पतंगे काग़ज़ी
नारंगी, उजली हरी वाली
गुलाल कुछ चेहरों पर
तो कुछ हवा में बिखेरते थे
जाने कहाँ वो मौसम गयी
बच्चे घर में बड़े हो गए
तिरंगा संसद की हवा में
लहराते रहे, देख यही
वो दिन आज याद आते रहे
वो याद है पहली सुबह
कैसे आँखें मींचे उठते थे।
नितेश वर्मा
कैसे आँखें मींचे उठते थे
घर से बाहर एक शोर होती थी
झंडा सबके हाथ होता था
सर पर किसी किसी के
तिरंगा टोपी होता था
वो ही भरे थैले चाकलेटों का
इकलौता मालिक होता था
खूब उडाये, खूब लूटे थे
पतंगे काग़ज़ी
नारंगी, उजली हरी वाली
गुलाल कुछ चेहरों पर
तो कुछ हवा में बिखेरते थे
जाने कहाँ वो मौसम गयी
बच्चे घर में बड़े हो गए
तिरंगा संसद की हवा में
लहराते रहे, देख यही
वो दिन आज याद आते रहे
वो याद है पहली सुबह
कैसे आँखें मींचे उठते थे।
नितेश वर्मा
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