Friday, 21 August 2015

सुबह उठकर फिर सब समेटने लगा

सुबह उठकर फिर सब समेटने लगा
रात ने कल फिर तन्हा कर दिया था
कुछ यूं लूटा था मेरे जिस्म से जमीर
जिंदगी ने मुझको अंधा कर दिया था।

नितेश वर्मा और जिंदगी

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