ज़िन्दगी हर बार मुझसे इक सवाल करके चली गयी
मुझसे इतनी थीं मुहब्बत के कंगाल करके चली गयी।
मैं अभ्भी रो लेता हूँ जी के यूं हल्के से घबरा जाने पर
नज़र तेरी कुछ ऐसी अज़ीब कमाल करके चली गयी।
टूट के बिखरा पडा हैं मेरी आँखों में तमाम चेहरा तेरा
कौन कह रहा था के तू मुझे हलाल करके चली गयी।
मुझको ये ग़म नहीं के मेरे घर कोई रौशनी नहीं वर्मा
शिकायत ये के क्यूं वो शहर बेहाल करके चली गयी।
नितेश वर्मा और वो चली गयी।
मुझसे इतनी थीं मुहब्बत के कंगाल करके चली गयी।
मैं अभ्भी रो लेता हूँ जी के यूं हल्के से घबरा जाने पर
नज़र तेरी कुछ ऐसी अज़ीब कमाल करके चली गयी।
टूट के बिखरा पडा हैं मेरी आँखों में तमाम चेहरा तेरा
कौन कह रहा था के तू मुझे हलाल करके चली गयी।
मुझको ये ग़म नहीं के मेरे घर कोई रौशनी नहीं वर्मा
शिकायत ये के क्यूं वो शहर बेहाल करके चली गयी।
नितेश वर्मा और वो चली गयी।
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