उसको मुस्कुराकर मेरी बातों को टालने की आदत हो गयी थीं। जब भी मैं कोई बात करता, वो टाल जाती। आखिर कब तक ऐसे चलता एक रोज़ ये सोच कर मैं उसके पास एक धमकी भरा माहौल लेकर पहुंचा की अगर तुम्हें मेरी बातों का जवाब नहीं देना, तो ठीक है अब मैं ये बातों का सिलसिला भी बंद ही कर देता हूँ, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी वो मुझसे एक कदम आगे निकली। जवाब सुनकर यकीन नहीं हुआ के अब वो मुझसे मिलना ही नहीं चाहती, हर बार की तरह इस बार भी मेरी आवाज़ गले में रह गयी।
फिर अपनी वो लिखीं लाईन बरबस याद आ गई - आपको अपनी आवाज की पहचान तब होती है, जब आप खामोश होते हैं।
शायद इसी वक्त के लिये राहत इंदौरी ने ये शे'र लिखा हैं -
उसने ठीक ही किया मुझसे किनारा करकें
फैसला मैंने किया था कि छोड़ दूँगा उसे।
नितेश वर्मा
फिर अपनी वो लिखीं लाईन बरबस याद आ गई - आपको अपनी आवाज की पहचान तब होती है, जब आप खामोश होते हैं।
शायद इसी वक्त के लिये राहत इंदौरी ने ये शे'र लिखा हैं -
उसने ठीक ही किया मुझसे किनारा करकें
फैसला मैंने किया था कि छोड़ दूँगा उसे।
नितेश वर्मा
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