Wednesday, 5 August 2015

आज अचानक

आज अचानक तुम मिल गये तो जैसे सब कुछ फिर से नया हो गया। ऐसा लग रहा हैं जैसे सब अभी हाल में ही होके गुजरा हैं। अभी भी तो तुम थोडे भी नहीं बदले, वहीं बडी-बडी आँखें, पतला-सा शरीर और नाकों पे चढा गुस्सा। मैं क्या ये तो कोई भी नहीं भूल सकता। वैसे तुम कोई भूलानें वाली चीज थोडे ही ना हो, जो इक पल को याद आएं और फिर यादों से निकल गयें। वो याद हैं जब तुम मुझे देखते थें और मैं तुम्हें देखती थीं, अच्छा नाराज़ मत हो, तुम नहीं बस मैं तुम्हें देखा करती थीं और तुम्हारी नज़र जब कभी मुझपे आके ऐसी रूकती, तो तुम वो नजानें किस बेतरतीब तरीकें से मुँह बना के मुझपे गुस्सा दिखा दिया करते थें। पर मैं ना तो तुमसे उस वक्त नाराज़ हुआ करती थीं और ना ही आज इस बात को लेके बैठी हूँ, वो तो बात पे बात आयीं तो तुम्हें बस याद दिला दिया।

और आज देखों ना आज तो जब तुम मिलें तो मैं नहीं तुम मुझे देख रहें थें। घमंड नहीं कर रही हूँ और वैसे भी करूं तो इसमें बुरा क्या हैं, तुम्हारें जैसा हैंडसम लडका मुझें भरी इक भीड में देखें तो थोडा शोख बगाढनें का तो दिल हो ही जाता हैं। इक बात बताऊँ पर किसी को बताना मत मैं हर रोज फिर से कोई ना कोई बहाना करके घर से ठीक उसी वक्त तुम्हें देखने आ जाया करूंगी और तुम बस मुझें देख के आँखों ही आँखों में अपना प्यार जता दिया करना, मुझे तुमसे मुहब्बत हैं, लेकिन एक डर भी हैं। नजानें ये डर दिल से कब जाऐगा मैनें तो बरहाल कई बार कोशिशें भी की हैं पर तुम ही हो जो कि इनसे मुँह फेर लिया करते हो, लगता हैं मैं यूंही खतों-ख्यालों में गुजर जाऊँगी और तुम बस इन पन्नों में दबे रह जाओगें। इक शिकायत है और ये इक सुझाव भी अगली बार जब कभी मुझपे ऐसे नज़र चली जाएं तो कुछ का ना सही पर मेरी जुल्फों की थोडी तारीफ जरूर कर दिया करना, जो तुम्हारें जिक्र से ही नजानें कितनी बार बिगडा करती हैं, मुझसे तो नहीं संभलती शायद तुम्हारी बातों में मेरी तरह ये भी आ जाएं। एक बार कोशिश तो करके देखना, मुझसे जुडी हर इक चीज तुम्हारी होगी, हर इक चीज में तुम होगे उनपे बस इक तुम्हारा हक होगा बस तुम्हारा।

नितेश वर्मा और आज अचानक

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