ऐसे ही हर रोज़ इन दिनों को गुजार देता हूँ
काम ना मिले तो रात रस्ते पे गुजार देता हूँ।
यहाँ भूखा हूँ मैं घर का क्या हाल हुआ होगा
सोच के मैं भी सजदें में दुआ पुकार देता हूँ।
कोई ना समझे तो ना समझे मेरे दर्द ए आह
जब सबकी गलती को मैं ही सुधार देता हूँ।
बात जब हद से गुजरीं तो मुझे समझ आयी
कंघन उसके हाथ का मैं भी उतार देता हूँ।
वो सो गया है अब उसे परिशां ना करो तुम
वर्मा ऐसी कोशिशों को मैं धिक्कार देता हूँ।
नितेश वर्मा और गुजार देता हूँ।
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