Friday, 21 August 2015

जिन्दगी करती है कुछ करामात अपनी

बदल कर सब बातों से इक बात अपनी
जिन्दगी करती है कुछ करामात अपनी।

वो सहमी सी मेरे सीने से लग जाये कभी
हो किसी रोज़ ऐसी भी एक बरसात अपनी।

तेरे लबों पर भींगी सी ये लब ठहरें कभी
हो तुझसे कभी ऐसी मुलाकात अपनी।

समेट रहा हूँ हर रोज़ कई ख्वाब अपने
खुदा मिलेंगे तो करेंगे सवालात अपनी।

वर्मा परिशां करता है ये आफताब बहोत
जुगनूओं की भी आऐगी इक रात अपनी।

नितेश वर्मा और बात अपनी।

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