Saturday, 22 August 2015

जाने कौन सी बस्ती में सुबह नज़र आए मुझको

जाने कौन सी बस्ती में सुबह नज़र आए मुझको
मैं परेशां हूँ नींदों में भी अजीब डर आए मुझको

ये दीनार सौ दीनार बारहां झोली में आ गिरते है
शुक्र-ए-रहमत आँखों को ये हुनर आए मुझको

खून मेरे सिर कब तक रखता रहेगा वो जालिम
मौला किसी रोज़ तेरी कोई खबर आए मुझको

ये सियासत सिर्फ मशाल जलाने को रह गये है
फिर जाने पाँच साल कोई भी कहर आए मुझको

घबरा-घबरा के उठ जाता है ये दिल मेरा वर्मा
फिर माँगता दुआ बेखौफ ले लहर आए मुझको

नितेश वर्मा




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