मैं परेशां हूँ नींदों में भी अजीब डर आए मुझको
ये दीनार सौ दीनार बारहां झोली में आ गिरते है
शुक्र-ए-रहमत आँखों को ये हुनर आए मुझको
खून मेरे सिर कब तक रखता रहेगा वो जालिम
मौला किसी रोज़ तेरी कोई खबर आए मुझको
ये सियासत सिर्फ मशाल जलाने को रह गये है
फिर जाने पाँच साल कोई भी कहर आए मुझको
घबरा-घबरा के उठ जाता है ये दिल मेरा वर्मा
फिर माँगता दुआ बेखौफ ले लहर आए मुझको
नितेश वर्मा
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