Sunday, 23 August 2015

बिल्कुल हिन्दुस्तानी

उसको गाँव से शहर पढ़ने के लिए एक ढलान उतर के जाना होता था। कभी-कभी जब नयी प्रेमी युगल के लिए बारिश कोई रोमेंटिक सा मौसम लेकर आती तो उसे और परेशानी होती, यही कारण रहा था कि उसे अब तक ये बारिशें पसंद नहीं आयी थी। दरअसल उसे और लडकियों की तरह नखरे करना भी पसंद नहीं, चेहरा भींग जाये लेकिन सूट नहीं भींगना चाहिए; ऐसी ख्याल वाली लड़कियों से बिलकुल अलग थी वो।
मैं गाँव के इस ओर रहता था, इस बड़े से उच्च स्तरीय शहर में। जहाँ सब अपनी जिन्दगी की मशरूफियात में उलझे रहते थे, वक्त का तकाजा हुआ करता था। कोई बड़ा काम नहीं होता फिर भी व्यस्तता ऐसी की जां छोड़ने को तैयार ही नहीं होती थी।
दिन गुजरता था मैं उसके आने और जाने के इंतजार में हर सुबह-शाम उस टीले पर चला जाता। मुझे उसको यूं ही देखना बहोत अच्छा लगता था अगर दिल के एहसासों को पन्ने पर उतारा जा सकता, तो मैं वो एहसास आपको दिखा देता, जिसका ख्याल आज भी मुझे उसमें कितनी खूबसूरती से जिंदा किये रखा है।
अब समय बीत सा गया है, माहौल कुछ आगे निकल गया है, अब वो ढलान एक एक्स-प्रेस-वे का रूप ले चुका है। अब वहाँ बारिश की पानी रूकती नहीं। लड़कियों को अपने सूट की फिक्र नहीं होती। बेबाक होके लड़कियाँ अब घर से निकला करती है। लेकिन उस मौसम की बात ही अलग थी, लड़कियों की शोर जैसे बारिशों में एक अलग ही धुन पैदा करती थीं। लडके-लड़कियों की नजरें मिला करती थी, आँखों से प्यार की बातें होती थी, किताबों के गिराने-उठाने पर रिश्ते बनते थे। अब शायद ऐसा नहीं हो, क्यूंकि ना अब वो मौसम रह गये और ना ही वो अब हम। जमाना टेकनिकल हुआ हैं, और कुछ बातें, कुछ यादें भी, लेकिन दिल वहीं है आज भी, बिल्कुल हिन्दुस्तानी।

नितेश वर्मा

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