एक पश्चिमी प्रदेश से निकला हुआ लड़का.. ज़माने की हक़ीकत से मीलों दूर बैठा हुआ..
एक ग़रीब का बेटा, जिसने कुछ सपने देखें.. एक ज़ाहिल आशिक़ जो उसके चले जाने के बाद भी उसकी क़ैद से रिहा नहीं हो पाया.. एक नाउम्मीद शख़्स वो, जो किसी के उम्मीद से बंधा था.. एक जुनूनी लेखक जो ख़ुद इक रोज़ ख़ुदको मार आया था.. एक वो दिसंबर का महीना जो बिन बताएँ रात को ठंडी सड़क पर ओस भरकर उतर आये थे.. एक इंसान जिसपर ज़माने ने कई धोखे मले.. एक हसीन सा चेहरा जिसपर किसी ने कभी कीचड़ फ़ेंका तो किसी ने पत्थर दे मारी.. वो ग़रीब असहाय जिसपर कई ज़ख़्म उभरे लेकिन सफ़र उसने कायम रखी, क्योंकि इक मंजिल उसके इंतज़ार में सदियों से बेक़रार थी.. उसे सारी हदों को तोड़कर वहाँ जाना ही था.. कहानी बुनने का किरदार निभाना हो, तो इक इतिहास तो लिखना ही पड़ता है.. ख़ासकर कलम,पेट और क़िस्मत को बीच में लेकर चलने वाले लेखकों के लिए।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa
एक ग़रीब का बेटा, जिसने कुछ सपने देखें.. एक ज़ाहिल आशिक़ जो उसके चले जाने के बाद भी उसकी क़ैद से रिहा नहीं हो पाया.. एक नाउम्मीद शख़्स वो, जो किसी के उम्मीद से बंधा था.. एक जुनूनी लेखक जो ख़ुद इक रोज़ ख़ुदको मार आया था.. एक वो दिसंबर का महीना जो बिन बताएँ रात को ठंडी सड़क पर ओस भरकर उतर आये थे.. एक इंसान जिसपर ज़माने ने कई धोखे मले.. एक हसीन सा चेहरा जिसपर किसी ने कभी कीचड़ फ़ेंका तो किसी ने पत्थर दे मारी.. वो ग़रीब असहाय जिसपर कई ज़ख़्म उभरे लेकिन सफ़र उसने कायम रखी, क्योंकि इक मंजिल उसके इंतज़ार में सदियों से बेक़रार थी.. उसे सारी हदों को तोड़कर वहाँ जाना ही था.. कहानी बुनने का किरदार निभाना हो, तो इक इतिहास तो लिखना ही पड़ता है.. ख़ासकर कलम,पेट और क़िस्मत को बीच में लेकर चलने वाले लेखकों के लिए।
नितेश वर्मा
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