Tuesday, 4 July 2017

यूं ही एक ख़याल सा..

हर शख़्स एक उम्र में आकर परेशान हो जाता है.. उसे तमाम ख़ौफ़ एक साथ सताती हैं, एक साया या हज़ारों अक़्स उसका पीछा करती हैं.. बात-बात पर वो अपनी यकायक सर झटक देता है, कोई ख़याल ज़ेहन में उतरती है तो वो झुंझला जाता है। बनती तस्वीर को बिगाड़ देता है.. हालात, वक़्त, क़िस्मत को कोसता है.. ऊपरवाले से नाराज़गी जताता है या फ़िर सबसे हारकर.. उदास होकर ख़ामोश बैठ जाता है।
लेकिन वो शख़्स अपने किसी बुरे हालात में किसी के सामने मिन्नतें नहीं करता.. हाथ नहीं फ़ैलाता.. किसी की जी-हुजूरी नहीं करता, फ़िर यकीन मानिये वहीं एक शख़्स इतिहास लिखता है.. बाक़ी सारे क़िस्सों-कहानियों में सिमट जाते हैं।
अपने हालातों से ही जीतकर कोई कामयाब होता है, किसी मंजिल को पाता है.. नाम कमाता है, इतिहास लिखता है या फ़िर मिट्टी में राख़ होकर सिमट जाता है। दफ़्न होता है लेकिन उफ्फ़ नहीं करता.. आँखें फ़िर ज़माने भर की कराहती हैं, वो ऊपर से ख़ामोश सब देखता रहता है लेकिन वहाँ भी कोई मिन्नत नहीं करता.. या शायद वो पत्थर हो जाता है।
P.S.- अब ख़िड़की से बाहर ना देखिये आसमां नहीं पिघल रहा कोई। 😉

तमाम दर्द सीने के खुलकर ज़मीं पे बिखर गए
हमने सोचा ही ना फ़िर हम ख़ुदाया किधर गए।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

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