Tuesday, 4 July 2017

यूं ही एक ख़याल सा..

कभी मरते हुए शख़्स को देखा है तुमने? जब वो बिलकुल अपनी आख़िरी साँसें ले रहा हो तब?
नहीं.. कभी नहीं.. या शायद कभी.. ग़ौर ही नहीं किया कभी इनपर।
मरता हुआ शख़्स कभी झूठ नहीं बोलता।
ऐसा भी नहीं है बोलता भी होगा।
तुम्हें बहुत पता है? मरता हुआ आदमी कभी झूठ नहीं बोलता क्योंकि वैसे भी वो अपना सब कुछ छोड़ कर जा रहा होता है.. उसे किसी बात का मोह नहीं होता इसलिए मरता हुआ आदमी कभी झूठ नहीं बोलता।
और वो मरते-मरते अपनी इंसानियत दिखा जाता है.. कुछ ऐसा कहना चाहते हो तुम?
हरगिज नहीं!
मतलब कुछ ऐसा ही निकलता है।
मतलबी मत बनो.. मरते हुए आदमी पर तरस खाओ।
ख़ुद से तमाम तकलीफ़ों को झेल चुका इंसान कभी किसी पर कोई तरस नहीं खाता.. वो तो बहुत पहले ही मर चुका होता है, मुझसे इस तरह की बंधी उम्मीद तो तुम तोड़ ही दो।
फ़िर क्या सोचा है तुमने?
बदला और क्या?
तुम बदला लोगे?
जाहिरी बात है! इस हालात में यहीं करना बेहतर होगा।
तुम मर क्यों नहीं जाते?
मैं तो कब का मर चुका हूँ इसलिए किसी को सुन भी नहीं पाता.. तुम फ़िर से कभी चीख़ कर देखना मैं तुम्हें फ़िर ख़ामोश ही मिलूंगा।
ख़ामोशी तोड़ो और कुछ बोलकर देख लो.. यकीनन तुम्हें कुछ पल को सुकून जरूर आयेगा।
इस फ़रेब से निकलो और मेरी ख़ामोशी को ज़बान देने पर कोई ध्यान मत दो और ना ही इसकी कोई कोशिश करो। ख़ुद से मरा हुआ शख़्स कभी दुबारा ज़िंदा नहीं होता।
तुमसे बहस में कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
फ़िर कभी दुबारा मुकाबला करने मत आना अब से.. बाय! करवट फेरो और अब सो जाओ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

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