Tuesday, 4 July 2017

जब बात उसकी ज़ुबाँ से उतरती है

जब बात उसकी ज़ुबाँ से उतरती है
ख़्यालों में इक रात ढ़ल जाती है
ज़ेहन में उतरते हैं कई चेहरे एक संग
बात जिनमें अक्सर ठहर जाती है
हैंरत उसके माथे पर बूंदें बनाती है
मुझे देख मुझसे जब वो निगाहें चुराती है
फूल से गुलाबी लब यूं ख़ामोश होकर
मेरे ही नाम पर हल्के बुदबुदाते है
उसकी पायल जब कंगन सुनाते है
रात आसमां पे हसीन होने लगती है
जब तारे इक नाम पे इक नाम चढ़ाते है
सुबह जब दस्तक यकायक देती है
वो शर्मा कर यूं ख़ुदको सामने लाती है
इश्क़ बरस जाती है इक समुन्दर की
हवा जब देख उसको यूं इठलाती है
इक दास्ताँ उसके हाथों से उकरती है
जब बात उसकी ज़ुबाँ से उतरती है।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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