अप्रैल की उस गुलाबी भरी हसीं धूप में
लल्लन चचा के टी-स्टाल से यकायक
जब तुम्हारी स्कूल बस गुजर जाती थी
समोसे हवा और मुँह के बीच रह जाते थे
साइकिल सवार मनचला यौवन मन
जब वायु-वेग से तुम्हारे पीछे हो पड़ता
उस कड़कड़ाती पसीने भरी धूप में
हल्की सहमती बारिश बरस पड़ती थी
जब भीगे जुल्फों के संग तुम बस से उतरती
कई दिल एक साथ पंचर होते थे
दीपावली के पटाख़े की आवाज़ करते हुए
तुम मुस्कुराकर गुजर जाती जो अपनी गली
हम तुम्हारे पांव की मिट्टी चूमकर
अघोरी जोगी बन जाते और नाचते रहते
अब वो सबकुछ बीत चुका है
अब कुछ पहले जैसा नहीं रहा
ना तुम, ना मैं, ना ये बस, ना वो टी-स्टाल
और ना ही वो गुलाबी मौसम कहीं
अब अप्रैल ठंडी हवा के दरम्याँ गुजरती है।
नितेश वर्मा
लल्लन चचा के टी-स्टाल से यकायक
जब तुम्हारी स्कूल बस गुजर जाती थी
समोसे हवा और मुँह के बीच रह जाते थे
साइकिल सवार मनचला यौवन मन
जब वायु-वेग से तुम्हारे पीछे हो पड़ता
उस कड़कड़ाती पसीने भरी धूप में
हल्की सहमती बारिश बरस पड़ती थी
जब भीगे जुल्फों के संग तुम बस से उतरती
कई दिल एक साथ पंचर होते थे
दीपावली के पटाख़े की आवाज़ करते हुए
तुम मुस्कुराकर गुजर जाती जो अपनी गली
हम तुम्हारे पांव की मिट्टी चूमकर
अघोरी जोगी बन जाते और नाचते रहते
अब वो सबकुछ बीत चुका है
अब कुछ पहले जैसा नहीं रहा
ना तुम, ना मैं, ना ये बस, ना वो टी-स्टाल
और ना ही वो गुलाबी मौसम कहीं
अब अप्रैल ठंडी हवा के दरम्याँ गुजरती है।
नितेश वर्मा
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