अक्सर कहानियाँ स्थितियों पर लिखी जाती हैं। कहानी या तो प्रोत्साहन या हतोत्साहन के लिए लिखीं जाती है। आज के ज़माने में कहानी काफ़ी अलग तरीक़े से लिखीं जा रही है लेकिन आज भी मूलभूत आधारों का ख़ासा ध्यान रखा जाता है। किसी भी कहानी को लिखने के लिए तीन चीज़ों की जरुरत होती है - पात्र, विषय और परिणाम। बदलती स्थितियों पर कहानियों को बदला जा सकता हैं या अक्सर ऐसा होता भी है। उदाहरण के तौर पर देखिये-
एक माँ की बच्ची बहुत बीमार थी। वो उसे लेकर दौड़ती हुई अस्पताल पहुँचीं। डॅाक्टर ने बताया कि कोई ख़ास बात नहीं है बस थोड़ा-सा बुख़ार है, ये इंजेक्शन ले आइये.. मैं लगा दूँगा तो कल तक ठीक हो जायेगी। माँ बच्ची को वहीं डॅाक्टर के पास छोड़कर दवाखाने की ओर भागी। दुकानदार ने इंजेक्शन की क़ीमत 120₹ बताईं। माँ ने अपनी मजबूरी बताईं और दुकानदार से 20₹ उधार कर लेने को कहा। दुकानदार ने माँ की हाथों से इंजेक्शन छीना और फिर उसे दुकान से भगा दिया। माँ अपनी क़िस्मत पर रोते हुए वापस अस्पताल जाने लगी। इंजेक्शन के ना लगने की वज़ह से बच्ची की मौत हो गईं।
या फिर ऐसा हो सकता है कि उस माँ को ऐसी हालत में एक पत्रकार ने देख लिया हो और उसने 20₹ की मदद कर दी हो। बच्ची बच गई हो। माँ अपनी बच्ची को खुशी-खुशी घर लेकर चली गई हो और पत्रकार ने उसे अपने कैमरे में क़ैद कर लिया हो.. जो अग़ले रोज़ की सुबह की मसालेदार ख़बर साबित हुई हो।
या स्थिति थोड़ी और बदलते है। माँ दुकानदार की बातों का बुरा ना मनाते हुए दूसरे दुकान की तरफ़ भागी। दूसरे दुकानदार ने 95₹ में इंजेक्शन दे दी। माँ पिछले वाले दुकानदार को गाली देती हुई डॅाक्टर के पास पहुँची। डॅाक्टर ने इंजेक्शन देखा और उसे लगाने से मना कर दिया। कुछ दिनों बाद पता चला- डॅाक्टर और दुकानदार के बीच हर परचेसिंग पर कमीशन बंधी हुई थी।
या हो सकता है माँ ने जो इंजेक्शन दूसरी दुकान से ख़रीदी हो वो अनलाइसेंस्ड हो इसलिए थोड़े से कम दामों पर बेचे जा रही हो जिसके कई ख़तरनाक साइड-इफेक्टस हो। डॅाक्टर माँ के साथ मिलकर उस दुकान को सील करवाता है। उसकी ऐवज़ में बच्ची का इलाज मुफ़्त होता है और माँ को उसकी बहादुरी के लिए विधायक जी से सम्मान में एक गोल्ड मैडल प्राप्त होता है।
अगर थोड़ा ड्रामा बढ़ाएँ.. जिसके घर में बच्ची की इलाज के लिए ढंग से पैसे भी नहीं हो.. तो ऐसा हो सकता है कि बच्ची का पिता आवारा क़िस्म का हो और माँ जब गोल्ड मैडल लेकर घर पहुँची हो तो पिता ने माँ को मार-पीटकर उससे जबरदस्ती मैडल छीन लिया हो। मैडल लेकर वो दारू और जुएँ खेलने निकल गया हो और माँ लहूलुहान घर के कोने में बिलखती रही हो।
अग़र थोड़ा और बदलाव किया जाए तो। माँ अपनी बच्ची के लिए बेहाल सड़को पर पैसों के लिए दौड़ती-भागती.. लेकिन पैसे को पकड़ नहीं पाती। अचानक एक रइसज़ादे की गाड़ी आकर रुकती है.. माँ अपनी बच्ची की जान की भीख माँगती है। माँ की खूबसूरती पर फ़िदा रईस उसे गाड़ी में बैठने को कहता है।माँ हालात से हारकर उसके साथ चली जाती है। जब देर रात वो वापस अपने साथ एक पैसों से भरा सूटकेस लेकर अस्पताल पहुँचती है तो पता चलता है कि बच्ची मर चुकी है।
या सबसे हटकर हैप्पी इंडिंग की तरफ़ आते है। वज़ह बदलते है.. माँ दवाखाने के पास गाड़ी से उतरती है, दुकानदार 20₹ उधार को चुपचाप मान लेता है। दफ़्तर से बच्ची का पिता अपने काम छोड़कर अस्पताल भागा आता है। पिता के ऊँचे व्यक्तित्व एवं पहचान के कारण डॅाक्टर इंजेक्शन के आने से पहले चेकअप में लग जाता है। माँ इंजेक्शन लेकर आती है तो देखती है कि बच्ची अपने पिता के साथ हँसकर बात कर रही है और डॅाक्टर बच्ची और पिता के बग़ल में खड़ा होकर बोलें जा रहा है - अरे! आपकी बच्ची है.. फ़ोन कर दिया होता बस। मैं कुछ थोड़े ही ना होने देता। माँ दूर से खड़ी ये सब देखकर अपनी आँसुओं को पोंछने लगती हैं।
या एक वज़ह हैप्पी इंडिंग की ये भी हो सकती है कि माँ और पिता में एक-दूसरे को लेकर कई दिनों से अनबन बनी हो और आज इस छोटी सी बच्ची ने बीमार होकर उन दोनों को फिर से एक-दूसरे के क़रीब ला दिया हो।
बदलती स्थितियों पर कहानियाँ बदलती हैं। सामाज़ और वक़्त के बदलाव के साथ-साथ बहुत कुछ बदला है और इन बदलाव में कहानी-लेखन भी बदलीं है। भाषा की सहज़ता और साहित्यिक रूझानों के लिए कहानियों को आज की बोलचाल की भाषाओं में लिखने का प्रचलन चल गया है।
P.S. - इसका थोड़ा भी यह मतलब नहीं है कि आजकल के लेखकों में साहित्यिक भाषा और ज्ञान की कमी है। विषय-वस्तु की भाषा आम से आम पढ़े-लिखे पढ़नेवालों के सहूलियत से लिखी जाती है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #StoryWriting
एक माँ की बच्ची बहुत बीमार थी। वो उसे लेकर दौड़ती हुई अस्पताल पहुँचीं। डॅाक्टर ने बताया कि कोई ख़ास बात नहीं है बस थोड़ा-सा बुख़ार है, ये इंजेक्शन ले आइये.. मैं लगा दूँगा तो कल तक ठीक हो जायेगी। माँ बच्ची को वहीं डॅाक्टर के पास छोड़कर दवाखाने की ओर भागी। दुकानदार ने इंजेक्शन की क़ीमत 120₹ बताईं। माँ ने अपनी मजबूरी बताईं और दुकानदार से 20₹ उधार कर लेने को कहा। दुकानदार ने माँ की हाथों से इंजेक्शन छीना और फिर उसे दुकान से भगा दिया। माँ अपनी क़िस्मत पर रोते हुए वापस अस्पताल जाने लगी। इंजेक्शन के ना लगने की वज़ह से बच्ची की मौत हो गईं।
या फिर ऐसा हो सकता है कि उस माँ को ऐसी हालत में एक पत्रकार ने देख लिया हो और उसने 20₹ की मदद कर दी हो। बच्ची बच गई हो। माँ अपनी बच्ची को खुशी-खुशी घर लेकर चली गई हो और पत्रकार ने उसे अपने कैमरे में क़ैद कर लिया हो.. जो अग़ले रोज़ की सुबह की मसालेदार ख़बर साबित हुई हो।
या स्थिति थोड़ी और बदलते है। माँ दुकानदार की बातों का बुरा ना मनाते हुए दूसरे दुकान की तरफ़ भागी। दूसरे दुकानदार ने 95₹ में इंजेक्शन दे दी। माँ पिछले वाले दुकानदार को गाली देती हुई डॅाक्टर के पास पहुँची। डॅाक्टर ने इंजेक्शन देखा और उसे लगाने से मना कर दिया। कुछ दिनों बाद पता चला- डॅाक्टर और दुकानदार के बीच हर परचेसिंग पर कमीशन बंधी हुई थी।
या हो सकता है माँ ने जो इंजेक्शन दूसरी दुकान से ख़रीदी हो वो अनलाइसेंस्ड हो इसलिए थोड़े से कम दामों पर बेचे जा रही हो जिसके कई ख़तरनाक साइड-इफेक्टस हो। डॅाक्टर माँ के साथ मिलकर उस दुकान को सील करवाता है। उसकी ऐवज़ में बच्ची का इलाज मुफ़्त होता है और माँ को उसकी बहादुरी के लिए विधायक जी से सम्मान में एक गोल्ड मैडल प्राप्त होता है।
अगर थोड़ा ड्रामा बढ़ाएँ.. जिसके घर में बच्ची की इलाज के लिए ढंग से पैसे भी नहीं हो.. तो ऐसा हो सकता है कि बच्ची का पिता आवारा क़िस्म का हो और माँ जब गोल्ड मैडल लेकर घर पहुँची हो तो पिता ने माँ को मार-पीटकर उससे जबरदस्ती मैडल छीन लिया हो। मैडल लेकर वो दारू और जुएँ खेलने निकल गया हो और माँ लहूलुहान घर के कोने में बिलखती रही हो।
अग़र थोड़ा और बदलाव किया जाए तो। माँ अपनी बच्ची के लिए बेहाल सड़को पर पैसों के लिए दौड़ती-भागती.. लेकिन पैसे को पकड़ नहीं पाती। अचानक एक रइसज़ादे की गाड़ी आकर रुकती है.. माँ अपनी बच्ची की जान की भीख माँगती है। माँ की खूबसूरती पर फ़िदा रईस उसे गाड़ी में बैठने को कहता है।माँ हालात से हारकर उसके साथ चली जाती है। जब देर रात वो वापस अपने साथ एक पैसों से भरा सूटकेस लेकर अस्पताल पहुँचती है तो पता चलता है कि बच्ची मर चुकी है।
या सबसे हटकर हैप्पी इंडिंग की तरफ़ आते है। वज़ह बदलते है.. माँ दवाखाने के पास गाड़ी से उतरती है, दुकानदार 20₹ उधार को चुपचाप मान लेता है। दफ़्तर से बच्ची का पिता अपने काम छोड़कर अस्पताल भागा आता है। पिता के ऊँचे व्यक्तित्व एवं पहचान के कारण डॅाक्टर इंजेक्शन के आने से पहले चेकअप में लग जाता है। माँ इंजेक्शन लेकर आती है तो देखती है कि बच्ची अपने पिता के साथ हँसकर बात कर रही है और डॅाक्टर बच्ची और पिता के बग़ल में खड़ा होकर बोलें जा रहा है - अरे! आपकी बच्ची है.. फ़ोन कर दिया होता बस। मैं कुछ थोड़े ही ना होने देता। माँ दूर से खड़ी ये सब देखकर अपनी आँसुओं को पोंछने लगती हैं।
या एक वज़ह हैप्पी इंडिंग की ये भी हो सकती है कि माँ और पिता में एक-दूसरे को लेकर कई दिनों से अनबन बनी हो और आज इस छोटी सी बच्ची ने बीमार होकर उन दोनों को फिर से एक-दूसरे के क़रीब ला दिया हो।
बदलती स्थितियों पर कहानियाँ बदलती हैं। सामाज़ और वक़्त के बदलाव के साथ-साथ बहुत कुछ बदला है और इन बदलाव में कहानी-लेखन भी बदलीं है। भाषा की सहज़ता और साहित्यिक रूझानों के लिए कहानियों को आज की बोलचाल की भाषाओं में लिखने का प्रचलन चल गया है।
P.S. - इसका थोड़ा भी यह मतलब नहीं है कि आजकल के लेखकों में साहित्यिक भाषा और ज्ञान की कमी है। विषय-वस्तु की भाषा आम से आम पढ़े-लिखे पढ़नेवालों के सहूलियत से लिखी जाती है।
नितेश वर्मा
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