एक रोज़ जब किसी धुन पर बैठ जाऊँगी ना तो लिखने लगूंगी उसके बारें में।
एक लड़का था सबसे प्यारा, बस उसे मैं प्यारी नहीं लगीं। एक मुहल्ला था, जहाँ वो हर रोज़ मैचों पर ज़ुआ लगाता फ़िरता था, नियत से बुरा नहीं था.. बस उसने हालात बुरे बना लिये थे। देखने में हैंडसम था कमीना बड़ा, बस जब कभी गुस्से से आँख बाहर निकालकर देखता तो एक नम्बर का छटा हुआ गुंडा लगता था। थोड़ा मुँहफ़ट था, लड़कियों को भी टका सा जवाब देकर चुप करा दिया करता था। बदमाश नहीं था बस बदमिजाजी हो जाता था कभी-कभी। चाल-चलन अच्छी थी.. सीधी नज़र वाला था, बस नज़र ग़लत जगह लड़ा बैठा था।
अगले पन्ने पर ये भी लिखूंगी.. मुहल्ले की उस आख़री मोड़ पर एक और लड़की थीं.. उसे उससे मुहब्बत तो थी लेकिन उसे इस बात पर कभी यक़ीन नहीं हुआ। अग़र उसे किसी रोज़ उसके मुहब्बत पर यक़ीन हो जाता तो ये कहानी मैं नहीं वो लिखा करते एक-दूसरे के दिल के कोरे से काग़ज पर।
साथ में ये भी लिखूंगी अंडरलाइन करके.. उसके मुहब्बत में सारा शहर ज़ख़्मी हो गया था.. शहर भर में आग लग गई थी.. सारा शहर झुलस रहा था.. बस उसे ख़रोच नहीं आयी थी, वो पत्थर हो चुका था.. वो बस सबको जान से मारने के नये-नये बहाने ढ़ूंढ़ता था.. अब उसकी बारी थी, छटा हुआ तो वो पहले से ही था.. अब, बस सबको चुन-चुन कर बदला ले रहा था।
आख़िर में फ़िर.. और कुछ नहीं लिखूंगी, ना ही इस कहानी को ख़त्म करूँगी। कहानियाँ ऐसे ख़त्म नहीं होती, बस डायरी का एक और पन्ना पलटूंगी और पेन की पांइट तोड़कर उसे सज़ा-ए-मौत सुना दूंगी.. आख़री फ़ैसला कहानी के किरदार नहीं कहानी लिखने वाला करता है, तो उसका भी फ़ैसला वही करेगा जो सबकी कहानियाँ लिखा करता है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaEMoashara #DialogueWriting
एक लड़का था सबसे प्यारा, बस उसे मैं प्यारी नहीं लगीं। एक मुहल्ला था, जहाँ वो हर रोज़ मैचों पर ज़ुआ लगाता फ़िरता था, नियत से बुरा नहीं था.. बस उसने हालात बुरे बना लिये थे। देखने में हैंडसम था कमीना बड़ा, बस जब कभी गुस्से से आँख बाहर निकालकर देखता तो एक नम्बर का छटा हुआ गुंडा लगता था। थोड़ा मुँहफ़ट था, लड़कियों को भी टका सा जवाब देकर चुप करा दिया करता था। बदमाश नहीं था बस बदमिजाजी हो जाता था कभी-कभी। चाल-चलन अच्छी थी.. सीधी नज़र वाला था, बस नज़र ग़लत जगह लड़ा बैठा था।
अगले पन्ने पर ये भी लिखूंगी.. मुहल्ले की उस आख़री मोड़ पर एक और लड़की थीं.. उसे उससे मुहब्बत तो थी लेकिन उसे इस बात पर कभी यक़ीन नहीं हुआ। अग़र उसे किसी रोज़ उसके मुहब्बत पर यक़ीन हो जाता तो ये कहानी मैं नहीं वो लिखा करते एक-दूसरे के दिल के कोरे से काग़ज पर।
साथ में ये भी लिखूंगी अंडरलाइन करके.. उसके मुहब्बत में सारा शहर ज़ख़्मी हो गया था.. शहर भर में आग लग गई थी.. सारा शहर झुलस रहा था.. बस उसे ख़रोच नहीं आयी थी, वो पत्थर हो चुका था.. वो बस सबको जान से मारने के नये-नये बहाने ढ़ूंढ़ता था.. अब उसकी बारी थी, छटा हुआ तो वो पहले से ही था.. अब, बस सबको चुन-चुन कर बदला ले रहा था।
आख़िर में फ़िर.. और कुछ नहीं लिखूंगी, ना ही इस कहानी को ख़त्म करूँगी। कहानियाँ ऐसे ख़त्म नहीं होती, बस डायरी का एक और पन्ना पलटूंगी और पेन की पांइट तोड़कर उसे सज़ा-ए-मौत सुना दूंगी.. आख़री फ़ैसला कहानी के किरदार नहीं कहानी लिखने वाला करता है, तो उसका भी फ़ैसला वही करेगा जो सबकी कहानियाँ लिखा करता है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa #QissaEMoashara #DialogueWriting
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