Tuesday, 4 July 2017

तेरी गुस्ताख़ियों में ये सफ़ेद चाँद भरकर

ख़ास मुहब्बत के दिन.. मुहब्बत करने वालों के लिए..

तेरी गुस्ताख़ियों में ये सफ़ेद चाँद भरकर
तेरे चेहरे को ख़्वाबों की श्रृंगार से सजाऊँ
तेरे हाथों की कंगन कहेंगी बातें जो सारी
तेरी कानों में मैं अपने वो गीत भर आऊँ
तुझपे मैं रख दूँ ये खिलती धूप हसीं सारी
तेरे ज़ुल्फ़ों में कहीं मैं ये दिल छोड़ जाऊँ
हर साँस जब लेंगी करवटें मेरे दरमियान
बहकी उन गर्मियों में मैं ख़ुदको जलाऊँ
होगा दिल-ए-हाल भी क्या, कैसे बताऊँ
यारा मैं इतनी दूर से अब क्या समझाऊँ।

नितेश वर्मा
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