जब ठहर जाती है पांव किसी धूल की मानिंद
जम जाती है आईने पर इक परत कालिख की
चेहरें कुरदते हाथ जब कांटों से भर जाते हैं
मरहम जब ज़ख़्मों को यूं नासूर करते जाते हैं
कोई बेचरहगी उभरती है जो इक चेहरे से
मातम तमाम मुल्क की ज़ेहन झेलती है ताउम्र
उग़ताया हुआ मन जब हावी रहता है ख़ुदपर
आँसुओं से आफ़तों की समुंदर बरसती है
इंसान उस वक़्त पर आकर
अग़र लौट आये उस मंजिल से तो ठीक है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
जम जाती है आईने पर इक परत कालिख की
चेहरें कुरदते हाथ जब कांटों से भर जाते हैं
मरहम जब ज़ख़्मों को यूं नासूर करते जाते हैं
कोई बेचरहगी उभरती है जो इक चेहरे से
मातम तमाम मुल्क की ज़ेहन झेलती है ताउम्र
उग़ताया हुआ मन जब हावी रहता है ख़ुदपर
आँसुओं से आफ़तों की समुंदर बरसती है
इंसान उस वक़्त पर आकर
अग़र लौट आये उस मंजिल से तो ठीक है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
No comments:
Post a Comment