Tuesday, 4 July 2017

31 जनवरी

31 जनवरी की सुबह आँखें खोलते ही
जब पता चला अब तुम मेरी नहीं रही
वो विवाह आमंत्रण-पत्र मेरे सिरहाने पड़ा था
जिसके हर्फ़-हर्फ़ में आँसू क़ैद थी
दिल जब तकिये तले टूटकर बैठ चुका था
आँसू जब मेरी फैल चुकी थी बिस्तर पर
दादी ने अचानक रेडियो मिला दिया
महेन्द्र कपूर गा रहे थे-
"जाने वो कैसे लोग थे जिनके..
प्यार को प्यार मिला.."
माँ ने मिर्च के फोरन से जब दाल छौंका
सब खाँसते हुए रो पड़े थे आँगन में
पापा जब तुम्हारे घर से आएं मिठाई को खाकर बोले
मिश्रा जी की बेटी का रिश्ता पक्का हो गया
बहन ने लानत भेजते हुए जब अचानक से बुदबुदाया
"मर जाए वो कमबख़्त कहीं जाकर"
माँ ने हौले से मुझे देखा
दादी ने रेडियो बंद कर दिया
मैं कमरे से निकलकर उसके गलियारों में गुम हो गया
सदियों तक मुझे धूप की निगाहें भी ना ढूंढ पायी
शहर में फ़िर अचानक कई नृशंस हत्याएं हुई
ज़ुर्म मेरे नाम पर कोई दर्ज़ नहीं हुआ फ़िर भी
मैं इश्क़ का मारा था.. उसके इश्क़ का।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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