याक़िस्मत दो पल भी ना ठहरी वो तो आख़िर बार भी
फ़िर बेवफ़ाई की फ़ेहरिस्त समेटकर लौट आये हम।
बेरूख़ सी वो शाम के पाक़िज़गी बेहूदगी करती रही
इतने झल्ला उठे के उसको चपेड़कर लौट आये हम।
वो अंज़ामे-वफ़ा की बातों में मशगूल रहने लगी वर्मा
ख़ंज़र ख़ूनी तमाम सीने में लपेटकर लौट आये हम।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
फ़िर बेवफ़ाई की फ़ेहरिस्त समेटकर लौट आये हम।
बेरूख़ सी वो शाम के पाक़िज़गी बेहूदगी करती रही
इतने झल्ला उठे के उसको चपेड़कर लौट आये हम।
वो अंज़ामे-वफ़ा की बातों में मशगूल रहने लगी वर्मा
ख़ंज़र ख़ूनी तमाम सीने में लपेटकर लौट आये हम।
नितेश वर्मा
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