Tuesday, 4 July 2017

वो मेरे घर का बेहद पुराना कमरा

वो मेरे घर का बेहद पुराना कमरा
जिसकी बेजान सी उदास खिड़की
जो तुम्हारे छत के सामने खुलती थी
वहीं तो धड़कते थे दो बेज़ुबाँ दिल
जब शाम के अज़ान के धुन पर
तुम किसी सज़दे में बैठ जाती थी
किसी शिवालय की बजती घंटियाँ
जब मुझे उस नमाज़ में शामिल कर देती
ठीक उसी वक़्त एक ज़माना
ख़ंज़र उठाता था.. नृशंसतापूर्वक
छत और खिड़की को मिटाने के लिए
आज ज़माने की हालत बहुत बुरी है
मेरी खिड़की और तुम्हारे छत से भी
ज्यादा.. या शायद! बहुत ज्यादा।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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