Tuesday, 4 July 2017

यूं ही एक ख़याल सा - कौन सी मुहब्बत?

क्या हुआ ज़ल्दी वापस आ गए?
-आसमान गिर पड़ा बीच रास्ते में मुझपर..
अरे साफ़ बात करो।
-उसने आज तलाक़ ही माँग ली..
और तुम दे भी आये?
-नहीं.. दिया तो नहीं है बस टाल आया हूँ.. उसने रिहाई मांगी, मैं मुँह छिपाकर भाग आया।
इसे तुम रिहाई कहते हो? फ़िर उसका क्या जो तुमने उससे मुहब्बत की थी?
-कौन सी मुहब्बत? वो किसी मुहब्बत को नहीं मानती.. मैंने मुहब्बत की बात की और याद दिलाया तो कहने लगी- वो कोई मुहब्बत नहीं थी.. ज़्यादा ज़ोर दिया तो कानों की बूंदें निकाल कर मुँह पर दे मारी।
एकदम से.. सीधा मुँह पे?
-नहीं वैसे नहीं।
तो फ़िर कैसे?
-Technically.. बातों से। मैंने बताया कि मैंने जब वो बूंदें उसे तोहफ़े में दिये थे तब उसने I love you कहा था.. सुनकर गुस्से में आ गई और लौटाने लगी..
फ़िर..?
-बूंदें देते हुए कहने लगी- ये लो.. वैसे भी तलाक़ में सारे सामान एक-दूसरे को वापस करने होते हैं।
और तुम वो उठाकर ले आये?
-अरे नहीं.. उसकी तरफ़ से वो मुहब्बत नहीं थी लेकिन मेरे तरफ़ से तो था.. मैंने साफ़ कह दिया तलाक़ में दिये हुए चीजों को लौटाते होंगे, मुहब्बत में दिये हुये चीजों को वापस नहीं करते.. उन्हें तो अमानत के तौर पर संभालकर रखते हैं.. तो तुम भी इन्हें रख लो, बाद में दिल करें तो कभी-कभी पहन लेना या चाहो तो ये सोचकर फ़ेंक देना कि.. तुम्हारे मुहब्बत में मरता हुआ कोई लड़का ख़रीद लाया था।
तलाक़ क्यूं मांग रही है वो?
-ज़ाहिर है.. कोई और पसंद आ गया होगा। मेरी अम्मी कहा करती थीं.. औरतें किसी दूसरे मर्द के भरोसे ही पहले मर्द को छोड़कर जाया करती हैं। वक़ार नाम है शायद उस लड़के का.. पता नहीं।
वो सच कहती है ये मुहब्बत नहीं थी जिसमें पहले वादा किया.. हाँ! तुमसे प्यार है निकाह भी कर ली और जब शादी का वक़्त हुआ तो मुकर गई और कहने लगी- तुमसे मुहब्बत नहीं करती। ये तो ठीक वैसा ही हुआ कि कोई पार्टी इलेक्शन से पहले कहते फ़िरे.. हमें वोट दो अग़र हमारी सरकार बनी तो हम आपकी ग़ुरबत मिटा देंगे और जब सरकार बन गई तो ये कहने लगे- कौन सी ग़ुरबत..? वादा करके मुकरने वाले मुहब्बत नहीं करते, सौदे करते हैं और यक़ीन मानो मियां मुहब्बत सौदों से नहीं वफ़ा से निभाई जाती है।
-अब वफ़ा की बात क्या करें..
तुम तो कोई बात ना करो.. मेरी बात पर तो अम्ल किया भी नहीं होगा.. शक़ होता है मुझे तुमपर.. तुम मर्द के बच्चे नहीं हो।
-अरे नहीं.. थप्पड़ मार आया हूँ उसे, मग़र हाथ से नहीं मारी..
फ़िर..?
-Technically मारी है..
वो ज़ख़्म दे रही थी, मैं ज़ख़्म खा रहा था
वो तलाक़ मांग रही थी, मैं मुस्कुराँ रहा था।
याद रखो.. अग़र तुम्हें तलाक़ होने का ग़म है तो ख़ुशी का यक़ीन कम है। औरत जब हाथ छुड़ाएँ ना तो ये मत समझो कि वो जाना चाहती है, समझ लो कि वो जा चुकी है।
-मैं नहीं समझ पाया हूँ कुछ भी.. लेकिन उसने ही आज एक बात सर पर हथौड़ी मारकर समझा दी है- कि ये दुनिया हम अच्छे मर्दों की वज़ह से नहीं चलती.. अच्छी औरतों की वज़ह से चलती है।

नितेश वर्मा
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