Tuesday, 4 July 2017

यूं ही एक ख़याल सा..

एक मेहरबानी करो उस पर, उसकी ज़िंदगी ना बर्बाद करो।
-नहीं-नहीं! ऐसी नियत नहीं है मेरी.. मैंने तो ऐसा ख़्वाब में भी कभी नहीं सोचा था कि मैं उसकी ज़िंदगी बर्बाद करूँगा। मैं तो हमेशा से यही चाहता था कि वो ख़ुश रहे, आबाद रहे।
तुम्हारी नियत का सुनकर अच्छा लगा। एक काम करो अपना ट्रांस्फ़र करवाओ और दिल्ली छोड़ दो। कसम ख़ाओ की दुबारा ना कभी उसकी ज़िंदगी में झाकोगे और ना ही कभी दिल्ली की तरफ़ रूख़ करोगे।
-नहीं! ऐसा हरगिज नहीं कर सकता मैं। उसे कभी-कभार देख लूं, किसी रास्ते पर नज़र उससे टकरा जाएं बस.. इससे ज्यादा मुझे ना तो उससे कुछ चाहिए और ना ही दिल्ली से। भले, इसके जवाब में वो मुझसे कुछ भी ज़ाहिर ना करे, मैं इसपर कोई बात नहीं उठाऊँगा कभी।
अच्छा तो कुछ ऐसे इरादे हैं?
-इसमें कुछ ग़लत है क्या?
ग़लत तो ख़ैर कुछ भी नहीं मग़र इससे तुम्हारी नियत साफ़ नहीं दिखती। लड़कियों के दिल को तुमने कभी पढ़ा है? पहले तो वो नज़र मिलाने में कोई यक़ीन नहीं रखती और जब नज़र किसी से मिल बैठे तो उसे अपने क़रीब देखने लगती है, उसकी ख़्वाहिश जताती है.. सारी रात आँसू बहाती हैं, मग़र उसका तसव्वुर करना नहीं छोड़ती।
-हो सकता है लड़कियों की ऐसी ख़ूबी हो.. मग़र शायद तुम्हें याद नहीं रहा हो तो बता दूँ वो एक तलाक़शुदा बीबी है कोई सोलवहाँ गुजारती नादान लड़की नहीं.. अब वो मुझे नहीं मिलेगी बस इसका ही यक़ीन है।
और तुम इस उम्मीद में रहते हो कि काश! किसी रोज़ कोई आकर तुम्हारा ये यक़ीन तोड़ दे।
- मैंने तुमसे कुछ छिपाया नहीं है, मग़र मेरा यक़ीन करो उसके साथ दुबारा जीने की मेरी कोई ख़्वाहिश नहीं।

नितेश वर्मा
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