Tuesday, 4 July 2017

मुहब्बत मेरी ज़िन्दगी से बहुत दूर रहीं

मुहब्बत मेरी ज़िन्दगी से बहुत दूर रहीं
जिस्म ग़रीबी से इस तरह मजबूर रहीं।

तकलीफ़ से पनपा हुआ एक मजरूह
हर रात ख़्याले-निगाह चकनाचूर रहीं।

इस हक़ के आवाज़ को जायज़ किया
बात बढ़ायी, तो उनकी जी हुज़ूर रहीं।

अलमियाँ ये है मैं मर गया था कहीं पे
करवट बदल दी थी यहीं फ़ितूर रहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

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