जब ख़्वाब आँखों से बिछड़ जाते हैं
मुझमें ही कई शख़्स बिगड़ जाते हैं।
मैं रोता रहता हूँ ख़ुदमें फ़साने लेके
जब बारिशें, बादलों से लड़ जाते हैं।
क्यूं दिल सुबकता है, उसे सोचकर
बातें अक्सर, जबाँ से झड़ जाते हैं।
अग़र वो मुझे मिलता तो क्या होता
जीतके, जिस्म तो घर पड़ जाते हैं।
फ़िर से कोशिशें करेंगे.. अब वर्मा
हारने से नब्ज़, कहाँ सड़ जाते हैं।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
मुझमें ही कई शख़्स बिगड़ जाते हैं।
मैं रोता रहता हूँ ख़ुदमें फ़साने लेके
जब बारिशें, बादलों से लड़ जाते हैं।
क्यूं दिल सुबकता है, उसे सोचकर
बातें अक्सर, जबाँ से झड़ जाते हैं।
अग़र वो मुझे मिलता तो क्या होता
जीतके, जिस्म तो घर पड़ जाते हैं।
फ़िर से कोशिशें करेंगे.. अब वर्मा
हारने से नब्ज़, कहाँ सड़ जाते हैं।
नितेश वर्मा
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