उस सर्दियों की शाम में जब उदासी
मेरे कमरे के दहलीज़ पर आयी थी
लिहाफ़ में अकड़ता हुआ बदन
जब आलस्य को समेटे हुए गुम था
यौवन सौलहवाँ का ढ़लकर
जब चेहरे पर बिखरी पड़ी हुई थी
इक कंपकंपाती आवाज़ गर्माहट भरे
कानों में घुल गई थी यकायक
बस ख़यालों में तेरे दस्तक देने पर।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
मेरे कमरे के दहलीज़ पर आयी थी
लिहाफ़ में अकड़ता हुआ बदन
जब आलस्य को समेटे हुए गुम था
यौवन सौलहवाँ का ढ़लकर
जब चेहरे पर बिखरी पड़ी हुई थी
इक कंपकंपाती आवाज़ गर्माहट भरे
कानों में घुल गई थी यकायक
बस ख़यालों में तेरे दस्तक देने पर।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
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