जब ख़ामोशी ज़ुबाँ क़ैद कर लेती है
और सुबह का उगता हुआ सितारा
जिस्म पर कई चोटें करता हैं
ज़बान जब लड़खड़ाकर चीख़ती है
और ख़ंज़र जब आसमां से
बारिश के बूंदों के साथ बरसते हैं
नज़ाकत भरी जब कोई फूल यहाँ
मातम के दामन से लिपटती है
तो उस ख़ामोशी का टूट जाना ही
वाज़िब होता है
जो एक साथ तमाम चीख़ों को
किसी सन्नाटे तक ले जाती है और
तब ढ़लता हुआ सूरज बदन पर
मरहम सहलाता हुआ चला जाता है।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
और सुबह का उगता हुआ सितारा
जिस्म पर कई चोटें करता हैं
ज़बान जब लड़खड़ाकर चीख़ती है
और ख़ंज़र जब आसमां से
बारिश के बूंदों के साथ बरसते हैं
नज़ाकत भरी जब कोई फूल यहाँ
मातम के दामन से लिपटती है
तो उस ख़ामोशी का टूट जाना ही
वाज़िब होता है
जो एक साथ तमाम चीख़ों को
किसी सन्नाटे तक ले जाती है और
तब ढ़लता हुआ सूरज बदन पर
मरहम सहलाता हुआ चला जाता है।
नितेश वर्मा
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